टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल की अभूतपूर्व उपलब्धि के आलोक में क्या आपने कभी सोचा कि कौन सी कंपनियां मुनाफा कमाने में अव्वल रहती हैं? किनकी साख बाजार में सबसे अधिक होती है? इन सवालों के जवाब खोजने मुश्किल नहीं है। ये सब इसलिए आगे बढ़ रही है क्योंकि इन्हें नेतृत्व बेहतरीन मिला हुआ है। अब टीसीएस को ही लें। इसके मौजूदा चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर और मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश गोपीनाथ के टीसीएस में शिखर पद को संभालने से पहले ही टीसीएस विश्व स्तरीय कंपनी बन चुकी थी। इसका श्रेय टाटा समूह के मौजूदा चेयरमेन एन.चंद्रशेखर को ही देना होगा। वे टीसीएस के 2009 में सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए थे। उन्होंने टीसीएस से ही अपने पेशेवेर करियर का आगाज किया था। उन्हें टीसीएस स्वस्थ हालत में मिली थी। चंद्रशेखर ने टीसीएस में रहते हुए टाटा समूह के चेयरमेन रतन टाटा और टीसीएस के फाउंडर चेयरमेन फकीरचंद कोहली से लीडरशिप के गुणों को सीखा था। अगर आज भारत को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया सबसे खास शक्तियों में से एक मानती है और भारत का आईटी सेक्टर 190 अरब डॉलर तक पहुंच गया है तो इसका क्रेडिट फकीरचंद कोहली जी को ही देना होगा। उन्होंने ही वस्तुतः देश के आईटी सेक्टर की नींव रखी था। कोहली और रतन टाटा के साथ काम करके चंद्रशेखर ने प्रौद्योगिकी जगत में नवोन्मेष और उत्कृष्टता की संस्कृति को संस्थागत स्वरूप देना सीखा।

फॉरेक्स और CFD: समानताएँ और अंतर1

फॉरेक्स और CFDs: ऑनलाइन पैसा कमाने के लिए समानताएँ, अंतर और अवसर

फॉरेक्स और CFD दोनों इंस्ट्रूमेंट्स में ऑनलाइन ट्रेडिंग लगभग समान है, एक ही ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (MT4) पर, एक ही तकनीकी विश्लेषण टूल का उपयोग करते हुए, ट्रेड की गई परिसंपत्ति के स्वामित्व को वास्तव में ब्रोकर से ट्रेडर की ओर स्थानांतरित किए बिना और इसके विपरीत। अर्थात, दोनों ही मामलों में, कोई फर्क नहीं पड़ता कि विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं ट्रेडर कौन सी परिसंपत्ति खरीदता है या बेचता है, करेंसी, सोना, स्टॉक्स या तेल, इस कॉमोडिटी की स्वयं की उपस्थिति ही आवश्यक नहीं होती है और तदनुसार, इसका एक मालिक से दूसरे मालिक की ओर वास्तविक हस्तांतरण नहीं है। इसलिए, इस तरह के ऑनलाइन ट्रेडिंग को अक्सर नॉन-डेलिवरेबल कहा जाता है। और यहाँ तक कि यदि एक ट्रेडर ने 1 मिलियन बैरल तेल भी खरीदा है, तो वे उन्हें सीमा शुल्क की लागत, परिवहन, भंडारण और इस तेल की आगे बिक्री के साथ किसी भी समस्या के बारे में चिंतित नहीं होते हैं। इसमें से कोई भी नहीं है। और अंतर केवल ब्रोकर के साथ लेन-देन और उसकी क्लोजिंग के क्षण के बीच तेल के बाजार मूल्य में होता है।

सामूहिक अहंकार

यह बात दिमाग को झकझोर देती है. 35 वर्षीय एनआरआई के रूप में मैं विदेश में रहने के हमारे सामूहिक अहंकार पर हैरान हूं. यह ऐसा है, जैसे कि हम अपने वतन से बाहर आ गए हैं तो हमारा अभिषेक होना चाहिए और हमें विशेष कृपा मिलनी चाहिए. आप भारतीय हवाई अड्डों पर इससे रूबरू हो सकते हैं. अमेरिका के झुग्गी-झोपड़ी वाले घरों में रहने वाले घमंडी बच्चे यहां की विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं कमियों पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं. हम आइवी लीग से आते हैं. आपको पता नहीं है? ब्रिटेन में रहने वाले ऐसे भारतीय भीड़, बदबू और धक्कामुक्की पर नाराजगी जताते हैं.

खाड़ी देशों से विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं काला चश्मा पहनकर आने वाले उपहार के रूप में चॉकलेट लाते हैं और वहां नहीं होने के अपराधबोध को दूर करने की कोशिश करते हैं. आंकड़े बताते हैं कि पासपोर्ट धारक करीब 30 मिलियन भारतीय विदेशों में रहते हैं और इनमें से किसी ने देश के फायदे के लिए अपना घर नहीं छोड़ा. हमने बेहतर व्यक्तिगत सौदे की तलाश में घर छोड़ दिया, चाहे वह हमारे लिए अच्छा हो या नहीं.

भारत माता के साथ रिश्ता

हकीकत में, इन सबके बावजूद, हमारे और मातृभूमि के बीच का संबंध खुद-ब-खुद बना रहता है और काफी मजबूत होता है. इससे कोई समस्या नहीं है. हम उसे ही चुनते हैं, जो हमें लगता है कि हमारे लिए सबसे अच्छा रहेगा. लेकिन मुश्किल आने का इंतजार क्यों करें? क्या उनके परिवारों को आने वाली मुसीबत नजर नहीं आई? क्या उन्हें ऐसे संकेत नहीं मिले, जिससे उन्हें पता लग जाए कि उनके बच्चों की जान खतरे में है. जब हवाई अड्डे खुले थे और उड़ानें जा रही थीं तो उन्होंने अपने बच्चों को पहले वापस क्यों नहीं बुलाया?

निश्चित रूप से अभिभावकों की भी जिम्मेदारी होती है, जिसे उन्हें तेजी से निभाना चाहिए था. आप खुद जोखिम लेते हैं और अपनी किस्मत आजमाते हुए कोई फैसला लेते हैं. उनमें से ज्यादातर विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं ने ऐसा ही किया. वे वहां रुक गए. शुरुआती कुछ दिनों में तो उनके लिए यह सब रोमांच की तरह था. हालांकि, यह तब तक ही कायम रहा, जब तक वहां बमबारी शुरू नहीं हो गई और इसके बाद दहशत फैल गई. इस सामूहिक निकासी के दौरान नस्लवाद की कुछ घटनाएं भी सामने आईं. यह गौर करना होगा कि यूक्रेन के लिए हम सबसे प्रिय नहीं थे, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि उस देश पर हमला होना चाहिए. इस पूरे घटनाक्रम में कीव स्थित भारतीय दूतावास की तारीफ की जानी चाहिए कि कैसे उन्होंने बेहद कम कर्मचारी और ज्यादा महत्व वाली विदेशी सेवा नहीं होने के बावजूद बच्चों को बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की.

रेस्क्यू का नेतृत्व

यूक्रेन संकट के दौरान अधिकांश देश असहाय नजर आए. लेकिन हमने इस तरह के मिशन का नेतृत्व किया और यह हमारे लिए अच्छा है. वास्तव में, सरकार को जो करना चाहिए था, वह था कि वहां सीधे IAF C17 को उतार देना चाहिए था. जंग के मैदान से जिंदगी बचाना ज्यादा अहम है, न कि फूड सर्विस देना. एक C17 अधिकतम 500 लोगों के साथ उड़ान भर सकता है. और ऐसा किया भी गया. गौर करने वाली बात यह है कि यह सैर-सपाटे के लिए निकली कोई क्रूज फ्लाइट नहीं है.

इसी तर्ज पर हम कुछ A380 भी चला सकते थे और ऑपरेशन गंगा में उन्हें शामिल कर सकते थे. उदाहरण के लिए अमीरात ने सहर्ष मदद की होती. ऐसे में खर्च पर नियंत्रण रखते हुए वे करीब 450 मुसाफिरों को एक साथ ले जा सकते थे. एक अहम मिशन में A380 की जगह 737 और A320 जैसे छोटे विमान भेजकर अच्छी नीयत के साथ ही लेकिन नासमझी दिखाई गई. बाद में C17 का इस्तेमाल बेहद उचित कदम था. नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया था कि लगभग 13 हजार भारतीय यूक्रेन में फंसे हुए हैं. इनमें से आधे अब अपने-अपने घर पहुंच चुके हैं.

Economy: मंदी की आहट पर निशाने पर सरकार, विपक्ष मांग रहा जवाब

Economy

दुनियाभर में एक बार फिर आर्थिक मंदी आने के संकेत मिल रहे हैं। ऑटो सेक्टर, रियल्टी सेक्टर समेत तमाम परंपरागत उद्योग मंदी के संकट से गुजर रहे हैं। इस आर्थिक मंदी को लेकर भारत में भी तमाम तरह की चिंताएं जताई जाने लगी हैं। आर्थिक सर्वे करने वाली कई एजेंसियों की रिपोर्ट में भी यह बात सामने आ रही है कि देश में अब आर्थिक मंदी की आहट सुनाई देने लगी है, जिसकी वजह से ऑटो सेक्टर में कई लाख लोगों की नौकिरियां जाने की डर सता रहा है।

कई अखबारों में छपी आर्थिक मंदी की खबरों को आधार बनाते विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं हुए कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा है। प्रियंका ने ट्वीट करते हुए पूछा है कि देश में आर्थिक मंदी के लिए जिम्मेदार कौन है? प्रियंका गांधी ने कहा है कि इस भयंकर मंदी पर सरकार की चुप्पी खतरनाक है। कंपनियों के काम चौपट हो रहे हैं और लोगों को नौकरियों से निकाला जा रहा है। लेकिन सरकार मौन है। देश के नागरिक इस भयंकर मंदी पर वित्तमंत्री से कुछ सुनना चाहते हैं।

भारत की आईटी कंपनियों की कामयाबी के पीछे का सच

कार्यपालिका भी लोकतंत्र के मर्यादाओं के अनुरूप ही कार्य करे: RK सिन्हा

माफ करें, पर यह सच है कि अब भारत में सकारात्मक खबरों को लेकर कोई बहुत चर्चा ही नहीं होती। वैसी ख़बरें कभी कभी सामने आती हैं और फिर गायब हो जाती है। अब नेगटिव समाचारों पर अतिरिक्त रूप से फोकस देने का सिलसिला चालू हो गया है और सच कहें तो बढ़ता ही चला जा रहा है । इसका एक उदाहरण लें। देश की चार सबसे प्रमुख आई टी कंपनियां – टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल टेक्नोलॉजीज ने चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में एक लाख से अधिक पेशेवर युवक- युवतियों की भर्तियां कीं। यह पिछले वित्त साल के पहले छह महीनों से 13 गुना अधिक है। ये भर्तियां ठोस संकेत हैं कि भारत का आईटी सेक्टर काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। टीसीएस में फिलहाल सवा पांच लाख पेशेवर हैं। बाकी जिन आईटी कंपनियों का हमने जिक्र किया है, उनमें भी कुल मिलाकर तो लाखों पेशेवर काम कर रहे हैं। गौर करें कि इन कंपनियों में भर्तियां ही नहीं हो रही हैं। इनमें काम करने वाले पेशेवर बेहतर विकल्प मिलने पर अन्य कंपनियों का दामन थाम भी रहे हैं।

'अब पप्पू कौन है?', केंद्र पर सवाल करते हुए महुआ मोइत्रा ने पूछा

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सांसद महुआ मोइत्रा ने आज संसद में एक बड़ा सवाल उठाया- 'अब पप्पू कौन है?' उन्होंने नोटबंदी से लेकर ईडी की कार्रवाई और अर्थव्यवस्था की हालत तक पर गंभीर सवाल उठाए और पूछा विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं कि 'बताएँ कि अब पप्पू कौन है?' 'पप्पू' कहने से उनका क्या मतलब था, इसका भी उन्होंने अपने भाषण में जवाब दिया। मोइत्रा ने कहा कि यह शब्द सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा 'निंदा करने, अत्यधिक अक्षमता को दर्शाने' के लिए गढ़ा गया था। उन्होंने कहा कि 'मुझे आँकड़े बताने दीजिए ताकि पता चले कि वास्तव में पप्पू कौन है?'

तृणमूल कांग्रेस सांसद ने बीजेपी सरकार पर अक्षम होने का आरोप लगाते हुए औद्योगिक उत्पादन, विनिर्माण क्षेत्र के प्रदर्शन और भारत छोड़ने वाले लोगों की संख्या पर कई सवाल किए। उन्होंने बार-बार पूछा कि 'अब पप्पू कौन है?'

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