#WATCH | USA: Finance Minister Nirmala Sitharam responds to ANI question on the value of Indian Rupee dropping against the Dollar as geo-political tensions continue डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है to rise, on measures being taken to tackle the slide pic.twitter.com/cOF33lSbAT — ANI (@ANI) October 16, 2022

डॉलर मजबूत हो रहा है या रुपया कमजोर ? जानिए इस खास रिपोर्ट में

अमेरिका में दिया गया वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन का एक बयान इन दिनों सुर्खियों में है. सोशल मीडिया पर तो उनका ये बयान काफ़ी छाया हुआ है. ट्विटर से लेकर फ़ेसबुक तक उन्हीं के चर्चे हैं. हर कोई उनसे उनके इस बयान का मतलब पूछ रहा है. अब तो आप समझ ही गए होंगे कि, आख़िर हम किस मुद्दे की बात कर रह हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर होती रुपये की सेहत की.

A statement by Finance Minister Nirmala Sitaraman given in America is in the headlines these days. This statement of his has been quite shadowed on social media.

Rupee vs Dollar: ऐतिहासिक स्तर पर फिसला रुपया, क्यों आ रही है गिरावट और क्या होगा इसका असर?

डिंपल अलावाधी

Rupee vs Dollar: मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया ऑल टाइम लो पर खुला। इसका आम आदमी पर काफी असर पड़ेगा क्योंकि रुपये की गिरावट का सीधा नाता महंगाई से है।

Rupee vs Dollar Indian rupee fell past 80 for the first time ever

  • भारतीय रुपये के कमजोर होने से महंगाई बढ़ सकती है।
  • डॉलर की मजबूती से आयात महंगा हो जाएगा।
  • इस साल की शुरुआत से ही रुपया डगमगा रहा है।

नई दिल्ली। आज भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले (Rupee vs Dollar) 80 से भी नीचे गिर गया। शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 पर आ गया। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत पिछले आठ सालों में 16.08 रुपये यानी 25.39 फीसदी फिसल चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है अनुसार, साल 2014 में विनिमय दर 63.33 रुपये प्रति डॉलर थी।

मजबूत हो रहा है डॉलर
इस साल की शुरुआत से रुपया अब तक 7.6 फीसदी गिर चुका है। भारतीय रुपये के नुकसान का मतलब अमेरिकी मुद्रा के लिए लाभ है। इस साल की शुरुआत से डॉलर में लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा रेपो रेट में की गई वृद्धि से भी रुपये में कमजोरी का सिलसिला नहीं रुका है क्योंकि देश के जून व्यापार घाटे के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद चालू खाता घाटा बढ़ रहा था।

क्यों कमजोर हो रहा है रुपया?
दरअसल रूस और यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) की वजह से भू-राजनीतिक संकट और अनिश्चितताओं ने ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं के संकट को और बढ़ा दिया। यह अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि वे अभी महामारी के कारण हुई मंदी से उबर रही थीं।

रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा, उच्च वैश्विक कच्चे तेल की कीमत (Crude oil Price) और बढ़ती मुद्रास्फीति (Inflation) ने भी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की परेशानियां बढ़ा दी है।

रुपये की कमजोरी का एक अन्य प्रमुख कारण विदेशी पोर्टफोलियो कैपिटल का आउटफ्लो है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने 2022-23 में अब तक भारतीय इक्विटी बाजारों से लगभग 14 अगब डॉलर की निकासी की है।

वैश्विक कारणों से गिर रहा है रुपया: वित्त मंत्री
सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने लोकसभा में कहा था कि रूस-यूक्रेन संकट, कच्चे तेल के बढ़ते डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है दाम और वैश्विक वित्तीय स्थितियों के सख्त होने की वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से लगभग अरबों डॉलर निकाल लिए हैं, जिससे मुद्रा पर असर पड़ा है। हालांकि ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी मुद्राएं अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की तुलना में ज्यादा गिरी हैं। ऐसे में इस साल इन मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया मजबूत हुआ है।

गिरावट का असर कैसे होगा?
रुपये में गिरावट का सबसे प्रमुख असर आयातकों पर होगा, जिन्हें अब इम्पोर्ट के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। रुपये की कमजोरी से आयात महंगा हो जाएगा। भारत कच्चा तेल, कोयला, प्लास्टिक सामग्री, केमिकल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, वनस्पति तेल, फर्टिलाइजर, मशीनरी, सोना, कीमती और अर्ध-कीमती स्टोन, आदि आयात करता है। हालांकि रुपये के मूल्य में गिरावट से निर्यात सस्ता होगा।

इसके अलावा, विदेश में पढ़ाई करने का लक्ष्य बना रहे छात्रों पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि अब फीस में डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है वृद्धि देखने को मिलेगी। रेमिटेंस (वह पैसा जो विदेश में रहने वाले लोग अपने परिवार को भारत में भेजते हैं) की बात करें, तो अब इसकी लागत ज्यादा होगी क्योंकि वे रुपये के संदर्भ में ज्यादा पैसे भेजेंगे।

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'रुपया नहीं गिर रहा, डॉलर मजबूत हो रहा है', अमेरिका में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिया तर्क

डीएनए हिंदी: भारतीय करेंसी रुपया (Rupee) लगातार गिरने का नया रिकॉर्ड बनाता जा रहा है. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ये 82.32 के स्तर पर पहुंच गया है. इस बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने लगातार गिरते रुपये पर अपनी बात रखी है. उन्होंने कहा कि रुपया गिर नहीं रहा है, बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है. वित मंत्री इन दिनों अमेरिका दौरे पर हैं. वाशिंगटन डीसी में मीडियो को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही. उन्होंने कहा कि अन्य देशों की करेंसी देखें तो रुपया डॉलर की तुलना में काफी अच्छा कर रहा है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद को मजबूत बताते हुए कहा है कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती के बावजूद भारतीय रुपया में स्थिरता बनी हुई है. दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में भारत में इन्फ्लेशन कम है और मौजूदा स्तर पर उससे निपटा जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद अच्छी है, व्यापक आर्थिक बुनियाद भी अच्छी है. विदेशी मुद्रा भंडार अच्छा है. मैं बार-बार कह रही हूं कि इन्फ्लेशन भी इस स्तर पर है जहां उससे निपटना संभव है.’

वित मंत्री ने कहा कि वह चाहती हैं कि मुद्रास्फीति छह फीसदी से नीचे आ जाए, इसके लिए सरकार भी प्रयास कर रही डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है है. सीतारमण ने दहाई अंक की मुद्रास्फीति वाले तुर्की जैसे कई देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि दूसरे देश बाहरी कारणों से बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं.बाकी की दुनिया की तुलना में अपनी स्थिति को लेकर हमें अलर्ट रहना होगा. मैं फाइनेंशियल लॉस को लेकर पूरी तरह से सतर्क हूं.’

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'रुपया कमजोर नहीं, डॉलर हो रहा मजबूत'
रुपये के लगातार कमजोर होने से जुड़े एक सवाल उन्होंने कहा कि डॉलर की मजबूती की वजह से ऐसा हो रहा है. सीतारमण ने डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है कहा, ‘मजबूत होते डॉलर के सामने अन्य मुद्राओं का प्रदर्शन भी खराब रहा है लेकिन मेरा खयाल है कि अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया ने बेहतर प्रदर्शन किया है.’ वित्त मंत्री ने बढ़ते व्यापार घाटे के मुद्दे पर कहा कि इसका मतलब है कि हम निर्यात की तुलना में ज्यादा आयात कर रहे हैं. हम यह भी देख रहे हैं कि यह अनुपातहीन वृद्धि क्या किसी एक देश के मामले में हो रही है.’

वित मंत्री ने चीन पर साधा निशाना
दरअसल, उनका इशारा असल में चीन के लिहाज से व्यापार घाटा बढ़कर 87 अरब डॉलर होने की ओर था. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2021-22 में बढ़ गया था और यह अंतर 2022-23 में भी बढ़ना जारी रहा. 2021-22 में व्यापार घाटा 72.9 अरब डॉलर था जो इससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 29 अरब अधिक है. 2020-21 में व्यापार घाटा 48.6 अरब डॉलर था.

(PTI इनपुट के साथ)

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रुपया गिर नहीं रहा है, बल्कि डॉलर मज़बूत हो रहा है: वित्त मंत्री सीतारमण

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से रुपये की मज़बूती को लेकर अपनाए जाने वाले उपायों के बारे में पूछा गया था, जिस पर उन्होंने कहा कि डॉलर लगातार मज़बूत हो रहा है. इसलिए तय है कि मज़बूत होते डॉलर के सामने बाकी सभी मुद्राएं कमज़ोर प्रदर्शन करेंगी. The post रुपया गिर नहीं रहा है, बल्कि डॉलर मज़बूत हो रहा है: वित्त मंत्री सीतारमण appeared first on The Wire - Hindi.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से रुपये की मज़बूती को लेकर अपनाए जाने वाले उपायों के बारे में पूछा गया था, जिस पर उन्होंने कहा कि डॉलर लगातार मज़बूत हो रहा है. इसलिए तय डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है है कि मज़बूत होते डॉलर के सामने बाकी सभी मुद्राएं कमज़ोर प्रदर्शन करेंगी.

New Delhi: Finance Minister Nirmala Sitharaman addresses a press conference after presenting the Union Budget 2019-20, in New Delhi, Friday, July 5, 2019. (PTI Photo/Manvender Vashist) (PTI7_5_2019_000138B)

वाशिंगटन: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोर होती स्थिति के संबंध में एक सवाल का जवाब देते हुए रविवार को कहा कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है, बल्कि डॉलर मजूबत हो रहा है.

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भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद को मजबूत बताते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती के बावजूद भारतीय रुपये में स्थिरता बनी हुई है.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में भारत में मुद्रास्फीति कम है और मौजूदा स्तर पर उससे निपटा जा सकता है.

अपने आधिकारिक अमेरिकी दौरे पर सीतारमण ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद अच्छी है, व्यापक आर्थिक बुनियाद भी अच्छी है. विदेशी मुद्रा भंडार अच्छा है. मैं बार-बार कह रही हूं कि मुद्रास्फीति भी इस स्तर पर है जहां उससे निपटना संभव है.’

उन्होंने कहा कि वह चाहती हैं कि मुद्रास्फीति छह फीसदी से नीचे आ जाए, इसके लिए सरकार भी प्रयास कर रही है.

सीतारमण ने दहाई अंक की मुद्रास्फीति वाले तुर्की जैसे कई देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि दूसरे देश बाहरी कारकों से बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. उन्होंने कहा, ‘बाकी की दुनिया की तुलना में अपनी स्थिति को लेकर हमें सजग रहना होगा. मैं वित्तीय घाटे को लेकर पूरी तरह से सतर्क हूं.’

रुपये की फिसलन से जुड़े एक सवाल के जवाब में सीतारमण ने कहा कि डॉलर की मजबूती की वजह से ऐसा हो रहा है. उन्होंने कहा, ‘मजबूत होते डॉलर के सामने अन्य मुद्राओं का प्रदर्शन भी खराब रहा है लेकिन मेरा खयाल है कि अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया ने बेहतर प्रदर्शन किया है.’

वित्तमंत्री सीतारमण से पूछा गया था कि आगे रुपया जिन चुनौतियों का सामने करने वाला है, उसको लेकर आपका आकलन क्या है और इस गिरावट से निपटने के लिए क्या उपाय अपनाए जा रहे हैं. इस पर उन्होंने कहा, ‘पहली बात तो मैं इसे इस तरह नहीं देखती कि रुपया गिर रहा है, मैं इसे ऐसे देखती हूं कि डॉलर मजबूत हो रहा है. डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है. इसलिए तय है कि मजबूत होते डॉलर के सामने बाकी सभी करेंसी कमजोर प्रदर्शन करेंगी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं तकनीकी पक्षों पर बात नहीं कर रही, लेकिन यह तथ्य है कि भारतीय रुपया डॉलर के सामने टिका रहा है. विनिमय दर डॉलर के पक्ष में है. मुझे लगता है कि भारतीय रुपये ने बाजार की अन्य उभरती मुद्राओं के मुकाबले बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है.’

समाचार एजेंसी एएनआई के सवाल के जवाब में उन्होंने आगे कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक के प्रयास यह देखने की ओर अधिक हैं कि बहुत ज्यादा अस्थिरता न हो, यह रुपये की कीमत को ठीक करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘आरबीआई का काम सिर्फ अस्थिरता को नियंत्रित करना है और मैं यह पहले भी कह चुकी हूं कि रुपया अपना स्तर खुद पा लेगा.’

वित्त मंत्री ने बढ़ते व्यापार घाटे के मुद्दे पर कहा, ‘इसका मतलब है कि हम निर्यात की तुलना में ज्यादा आयात कर रहे हैं. हम यह भी देख रहे हैं कि यह अनुपातहीन वृद्धि क्या किसी एक देश के मामले में हो रही है.’

उनका इशारा असल में चीन के लिहाज से व्यापार घाटा बढ़कर 87 अरब डॉलर होने की ओर था.

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2021-22 में बढ़ गया था और यह अंतर 2022-23 में भी बढ़ना जारी रहा. 2021-22 में व्यापार घाटा 72.9 अरब डॉलर था जो इससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 29 अरब अधिक है. 2020-21 में व्यापार घाटा 48.6 अरब डॉलर था.

अमेरिका का मैन्युफैक्चरिंग उद्योग डॉलर की मजबूती से आया मुसीबत में

न्यूयोर्क: डॉलर का चढ़ता भाव अब तक बाकी दुनिया के लिए मुसीबत बना है। लेकिन अब ऐसे संकेत हैं कि इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ सकता है। डॉलर की महंगाई से अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के फिर डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है से खड़ा होने की संभावनाओं पर सवाल उठ रहे हैं। अमेरिकी मुद्रा की मजबूती की वजह से जहां अमेरिकी निर्यातकों को नुकसान होने लगा है, वहीं विदेशी उत्पादकों का लाभ बढ़ रहा है। अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में उत्पादित वस्तुएं विदेशी उपभोक्ताओं को महंगी दरों पर मिल रही हैं। उधर विभिन्न देशों की मुद्रा का भाव गिरने के कारण विदेशों में स्थित अमेरिकी कारखानों की कमाई डॉलर के अर्थ में घट गई है। बीते महीनों के दौरान अमेरिकी मुद्रा ना सिर्फ विकासशील देशों की मुद्राओं की तुलना में महंगी हुई है, बल्कि यूरो, जापान के येन और ब्रिटिश पाउंड भी इसकी तुलना में काफी सस्ते हो गए हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कंपनियां के तिमाही नतीजों की रिपोर्ट इस महीने के आखिर में आनी शुरू होगी। विशेषज्ञों के मुताबिक इन रिपोर्टों से यह सामने आएगा कि अमेरिका के औद्योगिक उत्पादकों की आमदनी में सेंध लगी है। कंपनियों के प्रदर्शन का आकलन करने वाली एजेंसी आरबीसी कैपिटल मार्केट्स ने भविष्यवाणी की है कि मुद्रा के भाव में बदलाव के कारण कंपनी समूह 3-एम को. की आमदनी में 5.1 फीसदी की औसत गिरावट आएगी। इसी तरह हीटिंग और एयर कंडीशनर उत्पादकों की आमदनी 3.4 फीसदी और जेनरल इलेक्ट्रिक कंपनी की आमदनी दो फीसदी घटेगी। उधर डॉलर के महंगा होने के कारण विदेशी कंपनियों को अमेरिकी बाजार में लाभ हो रहा है। इस वजह से उनके उत्पाद यहां सस्ते हो रहे हैं। ऐसा उस मौके पर हो रहा है, जब अमेरिकी कंपनियां अमेरिका के अंदर अपना उत्पादन बढ़ाने की नीति पर चल रही हैं। बाल्टीमोर स्थित कंपनी मर्लिन स्टील वायर प्रोडक्ट्स एलएलसी के अध्यक्ष ड्रियू ग्रीनब्लाट ने वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा- ऐसा लगता है कि हमारी प्रतिस्पर्धी कंपनियों की बिक्री में 10 से 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी।

इस अखबार के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान सप्लाई चेन टूटने और समुद्र मार्ग से आयात की लागत बढ़ने के कारण अमेरिकी कंपनियों ने देश के अंदर उत्पादन की नीति बनानी शुरू की। देश में सेमीकंडक्टर, ऑटो पार्ट्स, एलुमिनियम कैन और अन्य वस्तुओं के उत्पादन की नई फैक्टरियां लगाई गई हैं। इससे उम्मीद जोड़ी गई कि देश में रोजगार के हजारों अवसर पैदा होंगे और अमेरिकी उपभोक्ताओं को देश में उत्पादित सस्ती सामग्रियां मिल सकेंगी। लेकिन अब इन कंपनियों के सामने डॉलर की असामान्य महंगाई की समस्या आ खड़ी हुई है। अमेरिकी कंपनियों की एक और समस्या यूरोप में बढ़ता जा रहा आर्थिक संकट है। यूरोप में उपभोग घटने की वजह से मांग घटी है। इस बीच वहां अमेरिकी आयात पहले से काफी महंगा भी हो गया है। इस वजह से अमेरिकी कंपनियों का बाजार वहां सिकुड़ रहा है। इस वर्ष की दूसरी तिमाही में घरेलू उपभोक्ता सामग्री निर्माता अमेरिकी कंपनी व्हर्लपूल की यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में कुल बिक्री में 19 फीसदी की गिरावट आई। ऐसी ही खबर कई और कंपनियों के बारे में आई है।

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