असम में हिंसा : सरकारी उदासीनता ही जिम्मेदार!
गुवाहाटी से कोकराझार की ओर बढ़ते हुए कभी इस बात का एहसास नहीं होता कि आप एक ऐसे इलाके में घुस रहे हैं, जहां लाखों लोग बेघर हो चुके हों और कई लोगों की जान गई हो। सड़क के दोनों ओर हरियाली, पानी से भरी खेत, धान की रोपाई और ट्रैक्टर की बजाय परंपरागत तरीके से हल चलाते किसान दिखते हैं। बरसात के मौसम में पश्चिमी असम के इस इलाके में प्रवेश करते हुए कभी-कभी लगता है कि आप केरल के अंदरूनी एमएसीडी की मूल कहानी हिस्से में हैं।
यह एक अजीब इत्तफाक है कि बागियों की हिंसा, आदिवासियों का आंदोलन और अलग-अलग समुदायों के नस्ली संघर्ष अक्सर उन इलाकों में सिर उठाते हैं, जिन्हें कुदरत ने बेपनाह खूबसूरती दी है। छत्तीसगढ़ के बस्तर या झारखंड और ओडिशा के दूसरे इलाकों की तरह असम का बोडोलैंड भी कुदरती खूबसूरती के बीच हो रहे खूनी संघर्ष की मिसाल है।
कोकराझार का कॉमर्स कॉलेज ज़्यादातर पत्रकारों की रिपोर्टिंग का पहला पड़ाव बना। महिलाओं और बच्चों समेत बोडो समुदाय के करीब डेढ़ हज़ार लोग दंगों की शुरुआत के साथ ही यहां भागकर आ गए। प्रधानमंत्री के दौरे से पहले इस कैंप में पहुंचकर हमने कई लोगों से बात की। तब यहां हालात अच्छे नहीं थे। लोगों ने हमसे खाने-पीने से लेकर, दवाइयों, कपड़ों और टॉयलेट्स की दिक्कतों का ज़िक्र किया।
प्रधानमंत्री के आने से पहले इस कैंप को चमका दिया गया। पीएम के दौरे से पहले आने वाली एडवांस पार्टी और आर्मी ने मिलकर मेडिकल कैंप से लेकर पानी के टैंकरऔर मेकशिफ्ट टॉयलेट सबका इंतजाम कर दिया। हालांकि इस कैंप से कुछ ही किलोमीटर दूर चाहे बोडो समुदाय का टीटागुड़ी कैंप हो या फिर ढुबरी और चिरांग ज़िले में मुस्लिम समुदाय के लिए बनाए गए छोटे-बड़े कैंप, सब जगह हालात बहुत खराब दिखे।
मालपाड़ा गांव में रहने वाली 25 साल की जयश्री मूसाहारी पीएम के सामने तो नहीं जा पाई, लेकिन कैमरे पर उसने असम की नस्ली संघर्ष की एक तस्वीर ज़रूर खींच दी। बोडोलैंड में पिछले कुछ सालों में कई बार हिंसा भड़की, लेकिन उसके गांव में कभी हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष नहीं हुआ। मगर बार-बार भड़की हिंसा ने असम में इस बार साम्प्रदायिक लकीरें भी गहरी कर दी हैं।
जयश्री मूसाहारी को आज अपने भविष्य का डर सता रहा है, तो मुस्लिम समुदाय की ज़िंदगी भी पूरी तरह तितर-बितर हो गई है। चिरांग, गोसाईगांव औऱ ढुबरी ज़िलों में कैंपों में पहुंचे मुस्लिम समुदाय के कई लोगों के लिए वापस अपने घरों में लौटना फिलहाल मुमकिन नहीं है। आर्थिक रूप से भी ये लोग बोडो समुदाय के मुकाबले काफी कमज़ोर हैं।
मुस्लिम कैंपों का दौरा करते हुए यह बात भी साफ हुई कि यह महज़ हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष नहीं, बल्कि बांग्लाभाषियों को बोडोलैंड से खदेड़ने का मुद्दा है। यह असम के इस इलाके की अनदेखी और सियासी फायदे के लिए उसके इस्तेमाल की कहानी भी है। पिछले कई सालों से सरहद पार से लोगों के आकर बसने, वोटबैंक की तरह उनके इस्तेमाल होने और फिर उनके खिलाफ बोडो समुदाय के भीतर बढ़ते गुस्से को अनदेखा करने का सच भी इसका हिस्सा है।
आज चार लाख से अधिक लोगों को कैंपों में धकेल चुकी इस कहानी के कई पहलू हैं। उग्रवादी संगठन बोडो लिबरेशन टाइगर्स यानी बीएलटी भले ही आज एक राजनीतिक दल बनाकर मुख्यधारा में शामिल हो गया हो, लेकिन उसके काडर ने हथियार नहीं डाले हैं। यह हथियारबंद काडर बांग्लाभाषियों के लिए एक खौफ पैदा करता है और कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।
दूसरी ओर आज़ादी के बाद से अब तक ज़्यादातर समय असम पर राज करने वाली पार्टी कांग्रेस का रवैया एमएसीडी की मूल कहानी बेहद गैर-ज़िम्मेदाराना रहा है। सीमापार से शरणार्थियों की आमद पर ढुलमुल रवैया ही था कि एक ओर आईएमडीटी जैसा कमज़ोर कानून बनाया गया, जो बाद में सुप्रीम कोर्ट को रद्द करना पड़ा। दूसरी ओर 'इंदिरा इज़ इंडिया' कहने वाले देवकांत बरूआ ने ही असम पर कांग्रेसी पकड़ के लिए 'अली-कुली-बंगाली' की ज़रूरत का नारा दिया, जिसका साफ मतलब था कि कांग्रेस बांग्लादेशी शरणार्थियों की समस्या को हल करने की बजाय उसे सियासी हथियार बनाएगी और बढ़ावा देगी।
असम में भड़की मौजूदा हिंसा की राज्य सरकार ने न केवल अनदेखी की, बल्कि उसे फैलने का पर्याप्त समय भी दिया। कैंपों में मौजूद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने सोची-समझी रणनीति के तहत अल्पसंख्यकों के दिल में खौफ पैदा करने के लिए ऐसा किया।
मौजूदा जिस हालात को बांग्लाभाषी मुसलमानों को असम से खदेड़ने की कोशिश के रूप में भी इस्तेमाल हो रहा है, उसकी ज़द में मुस्लिम समुदाय के वे लोग भी आएंगे, जो कई सालों से असम में रहे रहे हैं। यह एक कड़वा सच है कि बाहरी आबादी के बढ़ने से बोडो समुदाय का गुस्सा बढ़ा है, लेकिन यह कहना भी ठीक समझ नहीं है कि संसाधनों पर दबाव बढ़ने की सारी ज़िम्मेदारी बांग्लाभाषी मुस्लिमों पर है।
यह एक सच है कि सीमापार से शरणार्थी जिस तरह से भारत में आए हैं, वह उनके आने से अधिक परोक्ष रूप से उन्हें यहां बसाने की कहानी है और अब संसाधनों के दबाव का हवाला देकर कत्लेआम की छूट तो कतई नहीं दी जानी चाहिए। यह भी हकीकत है कि रोज़गार के लिए जैसे बंगाली मुसलमान बांग्लादेश से असम में आए, वैसे ही बांग्लाभाषी हिन्दू भी उत्तरी बंगाल और कोलकाता के आसपास आकर बसे। यही नहीं, दुनिया के अलग अलग हिस्सों में भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका समेत कई एशियाई और अफ्रीकियों के अलावा तमाम देशों के लोग बसे और इनमें से कई गैर-कानूनी तरीकों से भी गए।
असल में आज असम देश के उन राज्यों में है, जहां आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या सबसे अधिक है। बोडोलैंड में बाहरी लोगों के आने से असंतोष है, तो मणिपुर, नागालैंड जैसे राज्यों में सरकार ने बंदूक के दम पर वहां के मूल निवासियों की आवाज़ को दबाया है। इन राज्यों से मूल निवासियों का पलायन देश के दूसरे हिस्सों में हुआ, यानी पूर्वोत्तर के अलग अलग हिस्सों में लोगों को 'बसाने और उजाड़ने' की राजनीति होती रही है।
शरणार्थी कैंपों में दौरा करते हुए एक बात बार-बार महसूस हुई। यह भावना पूर्वोत्तर के लोगों के दिल में घर कर गई है कि दिल्ली को नहीं लगता कि पश्चिम बंगाल के आगे भी हिन्दुस्तान बसता है। आज वहां जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे लोगों का यह गुस्सा भी एक वजह है। यह बार-बार साबित हुआ कि सरकारें इन इलाकों में सिर्फ अपने फायदे के लिए पहुंचती हैं, लेकिन यह खिलवाड़ कितना खतरनाक साबित हो रहा है, इसे समझाने के लिए किसी दिव्य दृष्टि की ज़रूरत नहीं है।
हमने अरुणाचल प्रदेश में अपनी ताकत क्यों नहीं बढ़ाई. भारत-चीन के बीच संघर्ष को लेकर भड़के असदुद्दीन ओवैसी
नेशनल डेस्क: भारत-चीन के बीच LAC पर हुई संघर्ष को लेकर विपक्ष ने जमकर मोदी सरकार पर हमला बोला। इस बीच AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस से ठीक पहले अगस्त 2022 में अरुणाचल प्रदेश में अपने सैनिकों की संख्या 75℅ तक बढ़ा दी थी, जिसने अंततः शी जिनपिंग को अगले 5 सालों के लिए फिर से चुन एमएसीडी की मूल कहानी लिया। ठीक ऐसा ही चीन ने 2017 में डोकलाम और अप्रैल 2020 में लद्दाख में किया था। हमने अरुणाचल प्रदेश में अपनी ताकत क्यों नहीं बढ़ाई, क्योंकि मुझे बताया गया है कि हम 'उम्मीद' कर रहे थे कि यह अस्थायी होगा और चीनी अपनी मूल ताकत पर वापस लौट जाएंगे!
इतना ही नहीं ओवैसी ने आगे कहा कि चीन ने डोकलाम, देपसांग, गलवान और डेमचोक के अनुभवों से यह जान लिया है कि प्रधानमंत्री ऑफिस इस हमले को भी कभी स्वीकार नहीं करेगा और अपने फ्रेंडली मीडिया का उपयोग एक अलग कहानी बनाने के लिए करेगा। इसलिए, चीन बिना किसी शोर-शराबे के धीरे-धीरे आक्रमण करना जारी रखे हुए है।
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प्रदेश में हजारों पदों पर शिक्षकों की भर्ती, इस दिन आएगी MPTET वर्ग-3 की मेरिट लिस्ट, आदेश हुआ जारी, एमएसीडी की मूल कहानी यहां देखें पूरी जानकारी
MP Teachers Vacancy 2023 Latest Update : भोपाल। मध्यप्रदेश में शिक्षकों से संबंधित एक शानदार खबर सामने आई है। प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करने वाले कैंडिडेट्स की मेरिट लिस्ट 30 दिसबंर को जारी की जाएगी। MP ऑनलाइन पोर्टल पर अभ्यर्थी सूची देख सकेंगे। इसके बाद डाक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू होगी। पहले यह लिस्ट 8 दिसंबर को जारी होने वाली थी, लेकिन किसी कारणवश सूची नहीं जारी हो सकी थी।
MP Teachers Vacancy 2023 Latest Update :आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि प्रदेश में 18 हजार 527 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है। इसकी शुरुआत 17 नवंबर से हो चुकी है। जानकारी के अनुसार, मध्य प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया फरवरी 2023 तक चलेगी। इसके लिए 2 लाख उम्मीदवारों ने क्वालिफाई किया है।
MP Teachers Vacancy 2023 Latest Update : प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड द्वारा आय़ोजित परीक्षा में साढ़े पांच साल से अधिक अभ्यर्थियों ने परीक्षा एमएसीडी की मूल कहानी दी थी। इसका रिजल्ट 8 अगस्त को जारी किया गया था। पहले मेरिट सूची 8 दिसबंर को आनी थी, लेकिन उस समय जारी नहीं की गई। लोक शिक्षण संचालनालय ने अब सूचना जारी कर बताया कि प्राथमिक शिक्षक एमएसीडी की मूल कहानी नियोजन 2022-23 के लिए दस्तावेज सत्यापन हेतु जारी की जाने वाली अभ्यर्थियों की सूची (मेरिट लिस्ट) अपरिहार्य कारणों से 8 दिसबंर को जारी नहीं की सकी। अब यह सूची 30 दिसंबर 2022 को जारी की जाएगी।
Gully Boy For Oscar Award 2020: रणवीर सिंह आलिया भट्ट की फिल्म गली ब्वॉय 92वें ऑस्कर अवार्ड के लिए भारत की तरफ से होगी ऑफिशियल एंट्री
रणवीर सिंह आलिया भट्ट की फिल्म गली ब्वॉय को 92वें ऑस्कर अवार्ड के लिए भारत के तरफ से मिली एंट्री (Photo-Instagram)
बॉलीवुड डेस्क,मुंबई. 92वें ऑस्कर अवार्ड में भारत की तरफ से जोया अख्तर के निर्देशन में बनी आलिया भट्ट और रणवीर सिंह की फिल्म गली ब्वॉय की ऑफिशियल एंट्री हो गई है. इस बात की जानकारी फरहान नख्तर ने ट्विटर पर शेयर करके दी है. फरहान ने लिखा कि गली ब्वॉय फिल्म को 92वें ऑस्कर अवार्ड के लिए भारत ने चयनित किया है. इस बात की काफी खुशी हो रही है. बता दें फिल्म अभी नॉमिनेट नहीं हुई है अगर फिल्म को नॉमिनेशन में जगह मिलती है तो इसे विदेशी भाषा में दिखाई जाएगी.
रिपोर्ट की माने तो आयुष्मान खुराना की अंधधुन, आर्टिकल 15, बधाई हो, वरुण धवन की बिल्ला जैसी फिल्मों को भारत ने नॉमिनेट किया था लेकिन गली ब्वॉय इस रेस में आगे रही. फिल्म गली ब्वॉय की कहानी एक गरीब लड़के की है जो एक रैपर बनना चाहता है लेकिन उसके जीवन में काफी मुश्किलें आती हैं और किस तरह से वह अपनी जिंदगी को रैप के जरीए सुनाता है और एक फेमस रैपर बनता है.
फिल्म की डायरेक्टर जोया अख्तर है. स्क्रिप्ट राइटर रीमा कागती हैं, इस फिल्म को रितेश सिधवानी ने प्रोड्यूश किया है, वहीं कास्ट की बात करें तो फिल्म में आलिया भट्ट, रणवीर सिंह, कल्की कोचलीन, सिद्धार्थ चतुर्वेदी, विजय राज नजर आएं थे. फिल्म को काफी पसंद किया गया था. कमाई भी काफी अच्छी रही. इस फिल्म पूरे वर्ल्ड वाइड में 238 रुपये तक की कमाई की थी.
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